चलो अबकी बार तुम्हारी फिर अगली बार हमारी बारी,डील !
क्यों ये तंत्र जागता नहीं ।
सेवा और व्यापार को जानता नहीं।।
नियम बने है, कानून भी है।
की स्कूल कोई व्यापार नहीं।।
फिर कैसे ये शिक्षा के मंदिर इतने आलीशान हो गए।
और बदले में गांव के गांव कंगाल हो गए।।
कैसे एक से दो और दो से चार हो गए।
गरीब तो छोड़ो अमीरी का दम भरने वाले भी लाचार हो गए।।
तनख्वाह का आधा फीस,कापी किताब उधारी है।
लुट रहें है घुट रहें है फिर भी क्या लाचारी है।।
सरकारी से मोह ऐसा छूटा जो जुड़ नही पाया है।
भले ही बिक जाए घर बार पड़ोसी ने भी तो पढ़ाया है।।
ये देखा देखी कितनों के अरमान ले गई।
अभी कुछ दिन पहले ही उन माशुमों की जान ले गई।।
इन आलीशान से पढ़ने वालों में भी बेरोजगारी है।
अब तो जागों, स ... View More